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रानी कर्णावती। Rani karnavati

आज हम आपको महिला शासक रानी कर्णावती के बारे में बताएंगे,महिला शासक की बात करे तो रानी लक्ष्मी बाई और राजिया सुल्तान जेसे कुछ गिनेचुने नाम ही चर्चामे रहते है। जब की गढ़वाल की रानी कर्णावती की शौर्य को भुला दिया गया है।

रानी कर्णावती ने गढ़वाल जैसे छोटे किले को डिफेंस करती हे और मुगलों से भी बचाती है।

रानी कर्णावती। Rani karnavati

गढ़वाल साम्राज्य ।Gadhwal Kingdom

गढ़वाल साम्राज्य एक स्वतंत्र हिलामय साम्राज्य था।जिसकी स्थापना 823 AD मे कनकपाल द्वारा की गई थी।इसकी अभी की लोकेशन की बात करे तो ये उत्तराखंड में है।1358 में यह के राजा अजयपाल ने 52 फोर्ट को जीत कर बढ़ाया,शरुआत में इसकी राजधानी देवलगढ़ हुआ करती थी। जिसको आगे चलके श्रीनगर में लेजाया गया तब के राजा महिपत सिंह थे, ये जम्मू कश्मीर का श्री नगर नही बल्कि गढ़वाल का ही एक श्रीनगर है।जो की अलकनंदा नदी के किनारे ऋषिकेश से 100 km दूर है।

फेरिस्ता गढ़वाल साम्राज्य के बारे में लिखता है कि ये राज्य नदी से सोना इकट्ठा करके अमीर बना था।गढ़वाल के पास गोल्ड , कॉपर की खदाने थी।

रानी कर्णावती

विलियम फिंच नाम के इंग्लिश ट्रेवलर लिखते हैं की गढ़वाल के राजा सोने की थाली में खाना खाते थे।महिपत सिंह एक सर्वर राजा थे जिनसे अपना पुरा जीवन युद्ध के मैदान में hu बिताया था। इनकी ही पत्नी का नाम कर्णावती था।माना जाता है की यह कांगड़ा की राज कुमारी थी।कांगड़ा को पहले ही जहांगीर ने जीत लिया था। कर्णावती ने तिब्बत, कुमाऊं, सिरमोर जैसे पड़ोसी से अपने राज्य को बचाया th, बल्कि मुगल से भी बचाया था।

गढ़वाल साम्राज्य और मुगल

1628 जब मुगल शासक शाहजहा गाड़ी पर थे तब उन्होंने सभी राजा को अपनी सेरमनी में आने का न्योता दिया उनके द्वारा भेजा गया मुगल मैसेंजर जब गढ़वाल पहोचा तो वहा के राजा महिपत सिंह को ये लगा की ये हम पर अटैक है, और उन्होंने मुगल मैसेंजर को बढ़ा अपमानित किया, जिसकी वजह से मुगल और गढ़वाल के बीच में खटास आ गई।मुगल बादशाह ने गढ़वाल की सोने की खदाने के बारे में सुना हुआ था।जिसे बादशाह वहा पर अटैक करने पर प्रेरित हुआ, इसे पहले की महिपत सिंह और शाहजहा का सामना सामना होता तभी महिपत सिंह 1631 में कुमाऊं पर अटैक करते ही और उनकी मृत्यु हो जाती है। उसकी मृत्यु के बाद उनका पुत्र पृथ्वीराजशाह को गादी पर बैठा दिया जाता है,और रानी कर्णावती उनके साथ ही गादी की रक्षा करती है।बार बार पड़ोसी गढ़वाल पर अटैक कार्येचाई पर कर्णावती उनका मुंह तोड़ा जहां देती है।साथ साथ वो लोक कार्य का भी काम करती है कही तरह की केनाल बनवाती है ।

1638 में कुमाऊं की गाड़ी पर राय बाजबहादुर चांद आते है, ये एक हिंदू राजा थे जिसने कही मंदिर भी बनवाए थे,लेकिन इनको मुगल कल्चर से खास लगाव था। बाजबहादुर चांद कही बार गढ़वाल पर अटैक करता है,पर इनको सफलता नहीं मिलती है। ऐसा कहा जाता है की बाजबहादुर चांद ने ही कांगड़ा के मुगल गवर्नर नवजात खान को गढ़वाल पर अटैक करने के लिए प्रेरित करता है ।वो नवजात खान की प्रोमिस करता है किया उसको सोना भी मिलेगा, ओर नवजात खान शाहजहां को कनविंस करता है और युद्ध के लिए निकल पड़ता है।

नवजात खान 30000 सैनिकों के साथ अटैक करने के लिए निकल पड़ता है और उनके गाइड का काम सिरमोर का राजा करता है, और हरिद्वार पहोच कर ये गंगा नदी को पर करता है रानी कर्णावती चाहती तो मुगल की बात मन कर शांति स्थापित कर सकती थी पर उन्होंने ऐसा नहीं किया और मुगल का सामना करने का फैसला किया।

इटालियन ट्रैवलर निकोलो मनुची ने इस युद्ध के बारे में लिखा है की रानी कर्णावती नवजात खान की सेना को पहाड़ी इलाके में थोड़ा अंदर आने देती है और जिस रास्ते से सेना अंदर आई थी उस रास्ते को बंद कर दिया। ऐसा कहा जाता है की आज जहा लक्ष्मण जुला है वही पर पर रानी ने मुगल की सेना को घेर लिया था। वहा से मुगल की सेना ना आगे बढ़ सकी और नाही पीछे। जा सकती थी। और जब नवजात खान को लगा की अब वो हार ने वाला है तो शांति सन्देश रानी कर्णावती को भेजा , रानी कर्णावती चाहती तो युद्ध यही खतम हो जाता, पर उन्हो ने एक शर्त रखी कि वो सभी सेना को छोड़ देंगी पर इन सबको अपनी नाक कटनी होंगी, मुगल सैनिकों के पास जन बचाने के लिए यही एक रास्ता था और सभी ने अपनी नाक कटाड़ी।

रानी कर्णावती ने मुगल कोर्ट को संदेश भेजा की ये नाक काट सकती है तो गर्दन भी काट सकती है।

इस तरह रानी कर्णावती ने हिम्मत से मुगल सेना का सामना किया और भौगोलिक पारिस्थित का उपयोग करके गढ़वाल साम्राज्य को बचाया।

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