src="https://alwingulla.com/88/tag.min.js" data-zone="20313" async data-cfasync="false"> महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद |

चंद्रशेखर आजाद का जन्म कब हुआ था?

महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906, अलीराजपुर, मध्य प्रदेश में हुआ था।

महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का जन्म मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था. अत्यधिक गरीबी में रहते हुए, उनके पिता चौकीदार के रूप में काम करते थे और बांस और मिट्टी से बनी झोपड़ी में रहते थे। 14 वर्ष की आयु में, उन्होंने एक छात्र के रूप में वाराणसी के एक संस्कृत विद्यालय में प्रवेश लिया। आजीवन ब्रह्मचारी चंद्रशेखर ने गांधी के राष्ट्रीय आंदोलन की आवाज सुनी और उसमें कूद पड़े। जब उसे पुलिस ने पकड़ा, तब वह इतना छोटा था कि हथकड़ी भी बहुत बड़ी थी! निर्दयी पुलिस ने उसे कोड़ों की सजा दी, जिसे उसने हँसते-हँसते सह लिया। गिरफ्तार होने के बाद, उसने खुद को ‘आज़ाद’, अपने पिता को ‘स्वतंत्र’ और अपना पता ‘जेल’ के रूप में पहचाना।

बाद के दिनों में वे हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी में शामिल हो गए और ऊपर बने क्रांतिकारियों के षड्यंत्रों में सहभागी हो गए। काकोरी षडयंत्र (1926), वायसराय की ट्रेन के पटरी से उतरने की षडयंत्र, विधान सभा की बमबारी, दिल्ली षडयंत्र, लाहौर में सॉन्डर्स पर हमला और दूसरा लाहौर षड़यंत्र प्रमुख थे।

1931 में इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में पुलिस द्वारा घेर लिए जाने पर उन्होंने आत्महत्या कर ली। भगत सिंह को उनकी शहादत के 24 दिन बाद (23 मार्च, 1931) को फाँसी दे दी गई। भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव, भगवतीचरण, शालिग्राम शुक्ल के अलावा बटुकेश्वर दत्त, विजयकुमार सिन्हा और अन्य युवक चंद्रशेखर आज़ाद के क्रांतिकारी नेतृत्व से प्रभावित थे।

चंद्रशेखर को आजाद क्यू कहा जाता है?

चंद्रशेखर को ‘आजाद’ नाम एक खास वजह से मिला। चंद्रशेखर जब 15 साल के थे तब उन्‍हें किसी केस में एक जज के सामने पेश किया गया। वहां पर जब जज ने उनका नाम पूछा तो उन्होंने ने कहा, ‘मेरा नाम आजाद है, मेरे पिता का नाम स्वतंत्रता और मेरा घर जेल है’। जज ये सुनने के बाद भड़क गए और चंद्रशेखर को 15 कोड़ों की सजा सुनाई, यही से उनका नाम आजाद पड़ गया। चंद्रशेखर पूरी जिंदगी अपने आप को आजाद रखना चाहते थे।

चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु केसे हुई?

अंग्रेजों से लड़ाई करने के लिए चंद्रशेखर आजाद इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में सुखदेव और अपने एक अन्य साथियों के साथ बैठकर आगामी योजना बना रहे थे। इस बात की जानकारी अंग्रेजों को पहले से ही मिल गई थी। जिसके कारण अचानक अंग्रेज पुलिस ने उन पर हमला कर दिया। आजाद ने अपने साथियों को वहां से भगा दिया और अकेले अंग्रेजों से लोहा लगने लगे। इस लड़ाई में पुलिस की गोलियों से आजाद बुरी तरह घायल हो गए थे। वे सैकड़ों पुलिस वालों के सामने 20 मिनट तक लड़ते रहे थ। उन्होंने संकल्प लिया था कि वे न कभी पकड़े जाएंगे और न ब्रिटिश सरकार उन्हें फांसी दे सकेगी। इसीलिए अपने संकल्प को पूरा करने के लिए अपनी पिस्तौल की आखिरी गोली खुद को मार ली और मातृभूमि के लिए प्राणों की आहुति दे दी।आजाद ने जिस पिस्‍तौल से अपने आप को गोली मारी थी, उसे अंग्रेज अपने साथ इंग्‍लैंड ले गए थे, जो वहां के म्‍यूजियम में रखा गया था, हालांकि बाद में भारत सरकार के प्रयासों के बाद उसे भारत वापस लाया गया, अभी वह इलाहाबाद के म्‍यूजियम में रखा गया है।

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